मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

प्रगति...?????

                   प्रगति ...??????

                   
                       सुना कभी ना कोई मंथरा,

                   त्रेता युग के बाद,

                   कैकेई - मंथरा बन गए,

                   नारी के अपवाद


                   रंभा और उर्वशी अनेकों,

                   सभी मेनका बन बैठीं,

                   विश्वामित्र बना ना कोई,

                   पर देवदास सब बन बैठे,


                   दुर्योधन - दुःशासन मिलकर,

                   कई द्रौपदी बना रहे,

                   एक कृष्ण की कमी रह गई,
  
                   चीर हरण कब रुका करे.


                   सीताजी का अग्नि स्नान तो,

                   अक्सर होता रहता है,

                   क्यों जाने इंसान आज भी,

                   प्रगति हो रही.... कहता है.


                  एम. आर. अयंगर.

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03-10-2013 के चर्चा मंच पर है।
    कृपया पधारें।
    धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जनाब विर्क जी,

      आज का ( 3.10.13) का चर्चा मंच देखा.. अपनाी रचना सम्मिलित पाकर खुशी हुई. आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभारी.

      अयंगर.

      हटाएं
  2. बहुत खूब भाईसाहब !मार्मिक सन्देश। प्रासंगिक आंच लिए है यह रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर कहा आपने अयंगार जी ! यह भूल धरना है की हम सामाजिक प्रगति कर रहे हैं
    नवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. श्री कालीपद जी,

      सहमति के लिए धन्यवाद और प्रशंसा के लिए साधुवाद.

      अयंगर

      हटाएं

Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.